भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
झाँकियाँ / अजित कुमार
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 10:30, 14 अगस्त 2008 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अजित कुमार |संग्रह=अकेले कंठ की पुकार / अजित कुमार }} जि...)
जिसका भी जी चाहे कह ले
-ऐसे नहीं कभी थे पहले:
- खेत सुनहले।
- खेत सुनहले...
अंगराग बन गई कि जो थी अब तक धूल,
नाच रहे जैसे पहने रंगीन दुकूल:
- नीले फूल।
- नीले फूल...
इतनी ताज़ी जैसे अभी उगी कल-परसों,
मन में बसी रहेगी जाने कितने बरसों:
- पीली सरसों।
- पीली सरसों...
मेरी और तुम्हारी क्या, बौराये साधू और महन्त,
होठों पर उभरे सेनापति और प्रसाद, निराला, पन्त:
- स्वागत हे ॠतुराज वसन्त।
- स्वागत हे ॠतुराज वसन्त...