मेरी चिरकाल की संतप्त आत्मा के
पहले आत्मीय
मैं तुम्हारे अस्तित्व की शर्त हो रही हूँ.
एक निरुद्वेग प्रसन्न शान्ति की अभीप्सा
उत्कट अभिलाषा,
आर्त तृषा
विनत नयन
तुम्हारी एक चितवन की प्रार्थी हूँ
क्योंकि ?
चितवन से चिंतन
और चिंतन से चिन्मय
हो जाने की यात्रा में
मेरी विराट आस्था है.
मेरे प्रति तुम्हारा मूल्यांकन
कृतकाम हो तो
मेरा भी कर्म ग्रन्थ निष्काम हो जाए .
इस उन्मनी चितवन से ,
चित्त का चांचल्य सहसा ही थम जाता है.
मन शांत वीतराग निराकुल है,
कैवल्य के दर्पण में स्तब्ध विभोर होकर
तुम्हारी चितवन को निहारती हूँ.
चितवन बारीक से बारीक होती जा रही है,
मैं चिन्मयी होती जा रही हूँ.
आज भी तुम्हारी एक ,
चितवन की प्रार्थी हूँ.