भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

तृप्ति की अप्सरा / ऋषभ देव शर्मा

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 00:29, 30 जुलाई 2019 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=ऋषभ देव शर्मा |अनुवादक= |संग्रह=प्...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

प्राण के पात्र में
जन्म से छिद्र हैं
अब कहाँ बालिके !
नेह तेरा धरूँ?

इस शिला नेत्र में रक्त रेखा नहीं
वंचना में जिया,प्यार देखा नहीं
 
मन संशकित मुआ
तन कलंकित हुआ
चाह कैसे करूँ?
बाँह कैसे भरूँ?

सप्त स्वर स्वप्न के जल गए धूप में
इंद्रधनु सप्त्वर्णी गिरे कूप में
 
जब खनक ही नहीं
शेष रानी ! रही
हाय ! कैसे बनूँ
पाँव का घुंघरू?

हाथ पर लिख दिया भाग्य ने “वर्जना”
माथ पर लिख दिया “चिर तृषित “वासना”

तृप्ति की अप्सरा !
दूर रहना जरा
प्यास रहना जरा
प्यास पीकर जिया
प्यास लेकर मरूँ !!