भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

विश्वासी मन मेरा / ऋषभ देव शर्मा

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 19:58, 30 जुलाई 2019 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=ऋषभ देव शर्मा |अनुवादक= |संग्रह=प्...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

रह-रहकर मुझको छलता, विश्वासी मन मेरा
अंबर की ओर मचलता, सन्यासी मन मेरा

नित ऊषा से संध्या की, चौखट तक सूरज सा
जलता चलता गल ढलता, अभ्यासी मन मेरा

मधुवन ने तो यौवन को, वर लिया स्वयंवर में
नारद सा कभी उबलता, प्रत्याशी मन मेरा

बाँहों में कभी पिघलता, आहों में जम जाता
चाहों में कभी तरलता, अभिलाषी मन मेरा

पारे का सागर जैसे, लोहू में बसा हुआ
भीषण लूओं में पलटा, मधुमासी मन मेरा