लौट आये फिर वही पल / साधना जोशी
आयी है लौट के फिर वही खामोषी,
अफरा तफरी और तटों को,
बहने की खबरें ।
फिर चले गये हैं वे लोग,
सुरक्षित स्थानों की खोज में,
वैसे ही जैसे दो साल,
पहले से भाग रहे हैं,
जान माल बचाने के लिए ।
आपदा, आपदा, हर पल की आपदा,
सड़के बेहाल, पहाड़ वीरान, घर सुनसान,
अगली पिछली यादों से भरे हृदय बेजान,
निहारते हैं हर पल,
नदियों के बढते जल स्तर को,
और फिर से पोटली बांधते हैं,
आवष्यक सामान की ।
आँषू से डब-डबाई आँखें खोजती है,
अपने बिछड़े चमन को,
नदियों की उफानती लहरों में खोजती हैं,
मंजिलों की खण्डहरों में,
अपने घर के अस्तित्व को,
बार-बार आकर देखते हैं,
कम्प कम्पाते वृ़द्ध,
अभी बचा है हमारे,
घर का पिछला हिस्सा ।
रह गये हैं वही वादे आष्वासन,
जबान पर नेताओं के,
जो खड़े हैं सुरक्षा कार्यों पर,
अपनी गिद्ध दृश्टी जमाये,
कि मौका मिले और उठा ले जायंे,
भारी - भरकम रकम कोस, और,
हम भरदें अपने भण्डारों को ।