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अन्न कुंवारी के बिदा / मुन्नी लाल कटकवार

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जारे बेटी जारे मोर अन्न कुंवारी
सुसक सुसक रोवै, खेत महतारी।
कतका रक्त देके टोला मैं बिआएंव
छाती के गोरस पिया के जिआएव
हरियर लुगरा म अंग ल सजाएव
आज छोड़ जात मोरे देहरी दुआरी ।1।

छोटे बेटी तिल के बिदा जब होइस।
गर ल पोटर के राहेर भइयया रोइस
परसा ददा हर तोर पावे ल धोइस
दुख के नरवा मोर घर भर म बोहिस
आज मोर बेटी आगे तोर पारी ।2।

मड़वा छ्वाएं हे हरियर हरियर
लगन देखाइन अब फोरिन नरियर
कैसे मैं बेटी ल कोरा ले उतारौं
मया के ए बिरवा ल कैसे उखारों
आगे तोर लेवाल इंहा लेके डोला दाड़ी ।3।

झन रो मोर बेटी झन रो मोरे हीरा
बंगरी का जानै बिआए के पीरा
चार दिन के गए ले राहेर बाबू जाही
अकती वर तोला लेवाके ले आही
झन तै हदरवे झन होवे दुखियारी ।4।

जावे ससुरार कोठी ला भर देवे।
पर सुख खातिर तै दुख सहि लेबे
तिरिया जनम के हे अतके कहानी,
अंचरा म गोरस अउ आंखी म पानी
खाबे दूध भात रहिवे महल अटारी।
सुसक सुसक रोवै खेत महतारी ।5।