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आठ औरतें / अजित कुमार

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जिनमें से एक ने प्रेम किया मुझसे

ज्यों बूंदों ने धरती से ,

दूसरी ने घृणा जतलाई

जैसे बलिपशु ने बधिक से :

अंन्तरम से उदभूत भावनाएँ।


तीसरी ने मन दिया मुझे

जैसे सुरभि ने पवन को,

चौथी ने तन देना चाहा

उर्वशी ने अर्जुन को ज्यों :

भक्ति-आसक्ति के परस्पर विरोधी अनुभव।


पाँचवीं ने मुझ पर सर्वस्व वार दिया

ज्यों शेफ़ाली करती समर्पण हर सुबह,

और छठी ने मेरा सर्वस्व लेना चाहा

वामन ने बलि का जैसे :

मानव-विकारों के अदभुत उदाहरण्।


सातवीं उमड़ी मुझ तक

चांद के प्रति लहरों के आवेग की भाँति,

आठवीं हटी मुझसे

पाप जैसे मन्दिर से :

जीवन के 'पल-पल परिवर्तित' व्यवहार।


बदला मैं,

जुड़ा और टूटा भी,

मिला और छूटा भी,

उठा और गिरा,

कभी मुक्त, कभी घिरा रहा

उन सबके कारण ।


और वे सबकी सब-

आठों, दसों या बीसों :

केवल एक 'तुम' थीं ।