Last modified on 5 अगस्त 2019, at 18:00

हवा सँग रहूँगी / सविता सिंह

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 18:00, 5 अगस्त 2019 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सविता सिंह |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatKav...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

आज रविवार है
आज किसी का इन्तज़ार नहीं करूँगी
आज मैं क्षमा करूँगी
आज मैं हवा सँग रहूँगी
उसके स्पर्श से सिहरी एक डाल की तरह

बस, अपनी जगह रहूँगी
अलबत्ता थोड़ी देर बाद
पास ही तालाब में तैरती मछली को
देखने जाऊँगी
जानूँगी, वे क्या पसन्द करती हैं
तैरते रहना लगातार या सुस्ताना भी ज़रा
मैं उनकी आँखों में झाँकूँगी
बसी उनमें सुन्दरता के मारक सम्मोहन को
शामिल करूँगी जीवन के नए अनुभव में

आज पानी के पास रहूँगी
उसकी गन्ध को भीतर
उसके आस-पास के घास-पात के बहाने
भीतर के खर-पात देखूँगी

आज रविवार है
आज किसी का इन्तज़ार नहीं करूँगी
इस धरती पर रहूँगी
उसके तापमान की तरह