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नहीं-सा / सविता सिंह

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कल मुझे किसी ने सपने में प्यार किया
वह एक अलग दुनिया जान पड़ी
अपनी नसों में ख़ून का एक प्रवाह महसूस हुआ
आश्चर्य कि इस सपने में प्यार करने वाला नहीं दिखा
यह कुछ मछली के तड़पने के अहसास-सा था
उसकी आँखें मुझमें थिर होती-सी

पानी कहीं नहीं था यक़ीनन
पानी की तरह हवा थी
जिसमें बहुत कम आक्सीजन था
और वह प्यार वायुमण्डल के दबाव की तरह
दूसरों पर भी ज्यों पड़ रहा था
यहाँ कोई और न था
बस, सबके होने का एहसास था
वैसे ही जैसे प्यार था सपने में

जरा देर बाद मगर
एक गाड़ी जाती हुई दिखी
जिसमें शायद मैं ही बैठी थी
कार के बोनट पर
हवा में पँख लहराता एक बाज़ बैठा दिखा
जो बाज़ नहीं था
वह एक मछली थी शायद
जिसके पँख थे हवा में तैरते

सपने में ही सोचती रही
एक-दूसरे से मिलती हुई
अभी कितनी ही चीज़ें मिलेंगी
जो दरअसल वे नहीं होंगी

अच्छा हुआ सपने में मुझे जिसने प्यार किया
वह नहीं दिखा
आख़िर वह नहीं होता जो दिखता
जिसे पहचानने की आदत पड़ी हुई थी
वह खर-पात से बना कोई जीव होता शायद
दूसरी तरह की हवा में जीने वाला
प्रकृति का कोई नया आविष्कार
जिसे पहले न देखा गया हो
वह मनुष्य से वैसे ही मिलता-जुलता होता
जैसे नहीं-सा