भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

सुनो / अजित कुमार

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:18, 15 अगस्त 2008 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अजित कुमार |संग्रह=अकेले कंठ की पुकार / अजित कुमार }} यह...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

यहाँ से पथ मुड़ जायेगा ।

इधर घूमेगा, फिर उस ओर
खोजने को पृथ्वी का छोर
बड़ी ही मंज़िल नापेगा।

और कहते हैं-

आखिर में यहीं वापस उड़ आएगा …

उन्हें कहने दो-

जो वे कहें।

चलो, चलते ही हम-तुम रहें।