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योगक्षेम / योगक्षेम / बृजनाथ श्रीवास्तव

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सुनो साधुजन
सूखी नदियाँ फिर लहरायें
कुछ जतन करें

बडा दु:ख है
हम सबको भी
पशुओं और परिन्दों को भी
मंदिर दुखी
मँजीरे दुख में
दुखी पेड़ दुख संतों को भी

सुनो साधुजन
हिम पिघले, जल घन बरसाये
कुछ जतन करें

नेह भरे पुल
को हम सिरजें
इधर-उधर सब आयें जायें
बंजर रिश्तों
की यह खेती
नदी जोग से फिर लहराये

सुनो साधुजन
योगक्षेम के दिन हरियायें
कुछ जतन करें

हरियर मुखरित
पुलिन-पुलिन हों
वन प्रांतर में नदी गीत हों
ऐसा योग
रचें हम साधो
सभी शत्रु जन सगे मीत हों

सुनो साधु जन
तीरथ होती नदी नहायें
कुछ जतन करें