Last modified on 6 अगस्त 2019, at 19:14

वैदिक ऋचाएँ / योगक्षेम / बृजनाथ श्रीवास्तव

सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 19:14, 6 अगस्त 2019 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=बृजनाथ श्रीवास्तव |अनुवादक= |संग्...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

भूर्ज पत्रों पर लिखीं
वैदिक ऋचाएँ
पढ़ रहीं फिर से हवाएँ

देववन की
गंध उजली
फिर यहाँ आने लगी है
हाथ में
अमृतकलश ले
भोर छलकाने लगी है

यज्ञ मंत्रों में बँधी
वैदिक ऋचाएँ
फिर लगीं गाने दिशाएँ

लोग उकताये
नगर के
ढूढ़ते संदल पवन फिर
हो रहे फिर
शांति वन में
हैं नदी तट पर हवन फिर

लोग फिर पढ़ने लगे
वैदिक ऋचाएँ
और वे पिछली कथाएँ

भौतिकी दिन
लोभ के अब
आपसी सम्बंध तोड़ें
सार्वभौमिक
बात को भी
तर्क से अपने मरोड़ें

और फिर फिर पावनी
वैदिक ऋचाएँ
रात-दिन घर में सुनाएँ