दूर खड़े दिन
योगक्षेम के नये समय में
गुनी बाँचते
पढ़े कभी वह
हंस-बुद्ध की नीति-कहानी
ओछी माया
के चक्कर में
फँसे मिले हैं कितने ज्ञानी
लोग हँसे हैं
अपनो पर ही नये समय में
सभी नाचते
मंत्र धम्म के
मिले सिसकते
महानगर में साँझ-सबेरे
रोज अमानुष
घटनाएँ अब
दिखीं डालती घर-घर डेरे
सभी अकेले
नहीं किसी के नये समय में
लोग झाँकते
हवा प्रदूषित
कटुक वचन हैं
जले बाग-वन धूम्र दिशाएँ
वचन तथागत
के घायल हैं
जहर सनी कुछ चलीं हवाएँ
टूट रहे पर
अपनी-अपनी नये समय में
लोग हाँकते