भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
जनवादी / महेन्द्र भटनागर
Kavita Kosh से
Pratishtha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 19:43, 15 अगस्त 2008 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=महेन्द्र भटनागर |संग्रह=जूझते हुए / महेन्द्र भटनागर }} ...)
अनुचित करेंगे नहीं,
अनुचित सहेंगे नहीं!
अधिकार-मद-मत्त
सत्ता-विशिष्टो !
तुम्हारी सफल धूर्तता
और चलने न देंगे।
परलोक
या
लोक-कल्याण के नाम पर
व्यक्ति को
और छलने न देंगे।
मानव
अनाचार-नरकाग्नि में
अब दहेंगे नहीं।
स्वैरवर्ती
निरंकुश
नये विश्व में
शेष
निश्चित रहेंगे नहीं।