Last modified on 9 अगस्त 2019, at 15:04

तुम्हारा अक़्स उभरा जा रहा है / अनीता मौर्या

सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:04, 9 अगस्त 2019 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अनीता मौर्या |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KK...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

तुम्हारा अक़्स उभरा जा रहा है,
लहू आँखों से बहता जा रहा है,

मैं जितनी दूर होती जा रही हूँ,
वो उतना पास आता जा रहा है,

मुझे डोली में रुख़सत कर के देखो,
मेरा क़िरदार बदला जा रहा है,

वो गाड़ी दूर भागी जा रही पर,
कोई आँखों में ठहरा जा रहा है,

वो आया था तो मेला सज गया था,
मगर उस पार तन्हा जा रहा है ..