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नहीं शिकवा कोई मुझको किसी से / अनीता मौर्या

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नहीं शिकवा कोई मुझको किसी से,
लिखा था जो मिला है जिन्दगी से,

मेरी मासूम से हसरत है बाक़ी,
वो गुज़रे शाम को मेरी गली से,

उसे मिलने ही थे ग़म दिल्लगी में,
मिला है और क्या दीवानगी से,

दिलों के ज़ख़्म का मरहम न देना,
मज़ा जीने का हासिल है इसी से,

कफ़स में कैद हूँ फिर भी सुकूं है,
अजब लज्ज़त मिली दीवानगी से