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श्मशान / मुकेश प्रत्यूष
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1.
मृत शरीर में इतना पानी
कि घंटों आग रहे परेशान
चिड़-चिड़ तिड़-तिड़ करे
डोले इधर-उधर
चीत्कारे-सीत्कारे
बढ़ाए रह-रह अपनी ज्वाल
हित-मित्र सब हटे
जल जल्दी
कह भगत उठाए बांस
2.
सहा बहुत है इस शरीर ने
देखी नहीं घाम बरसात
अब आग दे बेटा और चाहे
कर ले चुपचाप स्वीकार.
3.
शरीर को नहीं
जल्दी भगत को है
मालूम नहीं - पड़ जाए जरुरत कब
सामने ही धूप में लगा रखी है खाट
पूरे महीने से है
घबरा रहा है मन और आ रहा है चक्कर
न बैठ पा रही हूं न उठ
कह लोथ सी लेट गई है पत्नी
हुलचुला रहा बेटा
है साल दो का
चाहता हहुआ के खाए मीट-भात
खाली हो भगत तब तो उतारे तसला
डरता है - पहीलौठां कहीं जला न ले हाथ.
4.
भगत किसे बताए हाल
सब आते हैं - रोते-धोते
किए रात-दिन उपवास.