भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
अहद-ए-सज़ा / हबीब जालिब
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 19:59, 10 अगस्त 2019 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=हबीब जालिब |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatNaz...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
ये एक अहद-ए-सज़ा है जज़ा की बात न कर
दुआ से हाथ उठा रख दवा की बात न कर
ख़ुदा के नाम पे ज़ालिम नहीं ये ज़ुल्म रवा
मुझे जो चाहे सज़ा दे ख़ुदा की बात न कर
हयात अब तो इन्हीं महबसों में गुज़रेगी
सितमगरों से कोई इल्तिजा की बात न कर
उन्ही के हाथ में पत्थर हैं जिन को प्यार किया
ये देख हश्र हमारा वफ़ा की बात न कर
अभी तो पाई है मैं ने रिहाई रहज़न से
भटक न जाऊँ मैं फिर रहनुमा की बात न कर
बुझा दिया है हवा ने हर एक दया का दिया
न ढूँड अहल-ए-करम को दया की बात न कर
नुज़ूल-ए-हब्स हुआ है फ़लक से ऐ 'जालिब'
घुटा घुटा ही सही दम घटा की बात न कर