भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

ये उजड़े बाग़ वीराने पुराने / हबीब जालिब

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:26, 13 अगस्त 2019 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=हबीब जालिब |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatGh...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

ये उजड़े बाग़ वीराने पुराने
सुनाते हैं कुछ अफ़्साने पुराने

इक आह-ए-सर्द बनकर रह गए हैं
वो बीते दिन वो याराने पुराने

जुनूँ का एक ही आलम हो क्यूँकर
नई है शम्अ' परवाने पुराने

नई मँज़िल की दुश्वारी मुसल्लम
मगर हम भी हैं दीवाने पुराने

मिलेगा प्यार ग़ैरों ही में 'जालिब'
कि अपने तो हैं बेगाने पुराने