रोवथे सुराज / सदाराम सिन्हा “स्नेही”
अंगना अंगना डेहरी डेहरी रोवथे सुराज।
रुक तरी छइहा म बइठे रोवथे सुराज॥
जब ले आगे हे सत्ता म कुर्सी के राज।
चारों मुड़ा दिखत हावै जुल्मी दगाबाज॥
सिधवा बिचारा धंधागे फोकट जेल म।
चातुर चोला फंसगे सोइझे खेल म।
सतवादी के मूड़ म गिरगे अकरस गाज ।1।
डाता भिखारी बनगे निक करनी करके।
पर खाता साव बनगे ठलहा बइठ के।
नेकी पछतावत हे करनी करके आज ।2।
चमचा के चक्कर म अब जनता चकरागे।
नेता के भाषण म बिकास के रसदा बोजागे।
नोट के परताप म वोट सकेलत हे आज ।3।
किसान के चीज ह बेचावत हे बेमोल।
बेपारी के जिनीस होगे निक अमोल॥
धन के लोभ म मनखे बन गेहे बाज ।४।
आफिस म बइठे हे राजा बनके अधिकारी।
बिन पइसा काम कभु नई बने सरकारी॥
बंगला वाला कंगला ल क़हत हे दगाबाज ।4।
सन्सो म स्वांशा के सोत सुखावत हे।
करजा छूटत सुख के उमर नंदावत हे।
जवानी ढरकगे बंधुवा मजदूरी करत आज ।5।
आरक्षण के बाना म बुद्धि होगे बदनाम ।
घोड़ा के दउड़ म गदहा ल मिलगे इनाम॥
जेखरे ज्यादा मत होगे ओखरे हे राज ।6।