भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
शान / मंगत रवीन्द्र
Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 00:00, 14 अगस्त 2019 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मंगत रवीन्द्र |अनुवादक= |संग्रह= }} {...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
कलम कुदारी नागर बइला, छत्तीसगढ़ के शान रे।
कवि किसान मोर मितान, वीर सिपाही जवान रे॥
फुदका म उण्डै इहां के लइका, खेलै भौंरा बांटी।
सोना उगलै खेत-खेत म, इहां के खतुहर माटी॥
नारी के सिंदूर मांग के लपकै, पगा पुरुष पहचान रे
कवि किसान..............
तरिया उबलै अमृत पानी, नदिया शक्कर घोरै।
बिरीछ के थांही मोती अरछे, चिड़िया अण्डा पारै॥
पर्वत मन रखवारी म ठाढ़े, संझा आऊ बिहान रे
कवि किसान................
गाड़ा ढुलै खार- खार म, ओन्हारी भर-भर लाथे।
मुटि यारी के बिछिया पैरी, चंदा स मुसकाथे॥
मेला-मड़ाई करमा फगुवा होरी छेरछेरा तिहार रे
कवि किसान............