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जितने सूरज उतनी ही छायाएँ / अवधेश कुमार
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जितने सूरज उतनी ही छायाएँ
मैं हूँ उन सब छायाओं का जोड़
सूरज के भीतर का हूँ अँधियारा
छोटे-छोटे अंधियारों का जोड़
नंगे पाँव चली आहट उन्माद की
पार जिसे करनी घाटी अवसाद की
एक द्वन्द्व का भँवर समय की कोख में
नाव जहाँ डूबी है यह सम्वाद की
जितने द्वन्द्व कि उतनी ही भाषाएँ
मैं हूँ उन सब भाषाओँ का जोड़
जितने सूरज उतनी ....