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देवारी आ गय रे / संतोष कुमार चौवे

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कातिक म देवारी, देवारी ले परिवां
दुइज भाई के मया ल जगाये आगय रे

राखी सावन के बंधना नवा चाउर के अंधना
वाट खाये के मौका, देवारी आ गय रे

दूर भगावव तोरी मोरी घर झगरा ले घेरी वेरी
लक्ष्मी मया के भूखायें समझाये आ गय रे

भागही यम के अंधियारी दिया वरही दुवारी
महिमा लक्ष्मी के भाई बिन वालाथे आ गय रे

लहलहावत खेत के वालि जाहि संगी अव कंगाली
वरट भूइया म दिया ह वन चंदैनी लागय रे

मन म अन वन के गठरी दनाका कस फोर
लक्ष्मी आय के संरेगा बताये आ गय रे

घर घर चकचक ले अंजोरी दिया वरही लक्ष्मी ठउर
लाइची दाना लाई वतासा के फरसाद देवारी आगय रे

बहिनी हाथ के पकवान डारे घर के अथान
जिमी कांदा मूनगा, बरी रखिया के साग ह भूलाये आगय रे

लउठी वाजत, राउत नाचत, बाजत गड़वा के निशान
भागत राउत ह मनवति जो हारे आ गय रे

देवारी आगय रे देवारी आगयरे, देवारी आगय