छल छद्म और अविश्वास से भरें हैं.
हर व्यक्ति और वस्तु में, क्षरण और मरण का कीट ,
जाने कौन तब मरे और अब मरे है.
जन्म अपने गर्भ में , मरण लेकर ही जन्मती है.
मरण अपने गर्भ में जन्म लेकर ही संवारती है.
भोगने की भावना पर मर्त्य सुख का भाव .
मन को उचाट कर देता है.
साँस में व्यथा की आरियों सी चलतीं हैं ,
जो सब कुछ सपाट कर देता है.
एक -एक मोह ग्रंथि बार -बार यहॉं चटक कर टूटती है.
तिल -तिल कर बने विकसित उपवन और यौवन
निर्दयता से एक पल में कूटती है.
निः शंक , निर्भय , निर्द्वंद और शाश्वती में जीना हो तो ,
अपने ही शरीर की मूल धरती पर उतरना होगा.
गहराव में ठहराव ,
बहाव में बिखराव है.
समय के प्रवाह में
शाश्वती प्रभाव की अभीप्सा है.
तो काल के भाल पर ,
अनाहत पौरुष और पराक्रम के ,
ध्रुवीय शिलालेख लिख दो,
जिस पर समय के हस्ताक्षर हों .
ऐसे ही जन्म --मरण कृतित्व अक्षर हों.