भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

ख़याल इक नाजुक सा / सुस्मिता बसु मजूमदार 'अदा'

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:18, 20 अगस्त 2019 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सुस्मिता बसु मजूमदार 'अदा' |अनुवा...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

नाजुक सा है ख़याल इक
साँसों का है करम
जो आह भी मैं भर लूँ तो
बन जाए वो मरहम
नाजुक सा है ख़याल इक।


कुछ दोस्ती से ज्यादा
कुछ पयार से है कम
ये जो तेरा मेरा रिश्ता
है आग पे शबनम
नाजुक सा है ख़याल इक।

तू जो बांहों में समेटे
मेरी सांसे जाएं थम
राहत है नाम रिश्ते का
आहट पे आँखे नम।

हमराज़ तू मेरा
हमख़याल है सनम
बिन तेरे सुकून भी नहीं
है चैन भी भरम
नाजुक सा है ख़याल इक।


पत्तों की सरसराहट
शाखों पे फूल कम
ये है जिन्दगी का झूठा सच
तू नहीं मेरा हमदम
नाजुक सा है ख़याल इक।