भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

पलाश के वन / सुस्मिता बसु मजूमदार 'अदा'

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:21, 20 अगस्त 2019 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सुस्मिता बसु मजूमदार 'अदा' |अनुवा...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

दास्तान-ए-शाख कहूँ
या अनवार-ए-इलाही

इसे अनवार-ए-इलाही कहते हो?
पत्ते छोड़ कर चले गये कब
आग फूलों ने लगाई है।

कितना बेबस हूँ मैं
बिछड़ने का गम जला रहा है इधर
उधर नर्म फूलों की आग
झुलसा रही है सो अलग
तुम इसे अनवार-ए-इलाही कहते हो?