Last modified on 20 अगस्त 2019, at 23:23

मेरे सच सपनीले (कविता) / सुस्मिता बसु मजूमदार 'अदा'

सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:23, 20 अगस्त 2019 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सुस्मिता बसु मजूमदार 'अदा' |अनुवा...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

हैं मेरे सफ़ेद काले भी रँगीले
हैं रंग मेरे सादे भी चमकीले
कभी सूरज बर्फ सा पिघलता है
कहीं चाँद ये आग उगलता है
कभी दिन खाली-खाली लगता है
कभी रात को मेला लगता है
न हरे न लाल न नीले पीले
हैं यार मेरे सच सपनीले।


मैं सोचता हूँ कुछ कर लूँगा
तसवीरों में रंग भर लूँगा
वो सब कुछ पहले से जानता है
खुद को खुदा वो मानता है
जो चाहकर भी सोच नहीं सकता
ऐसे रंग जीवन में वो घोलता है
न हरे न लाल न नीले पीले
हैं यार मेरे सच सपनीले।