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चले जाएँगे / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’
Kavita Kosh से
आएँगे नहीं
नज़र किसी को
विश्वास करो,
बहुत दूर अब
चले जाएँगे
तुम्हें न बुलाएँगे
लिपटे होंगे
सफेद चादर में
छूना न मुझे
निष्प्राण हुए अब
बिना आग के
हम जल जाएँगे।
हक़ न छीना
न सताया किसी को
कभी हमने
न गिराया किसी को
घर बसाए
उजाड़े नहीं नीड
बाँटा था प्यार
शूल ही मिले हमें
अनुताप न कोई।
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