भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
मोला भुलवार के / पीसी लाल यादव
Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:30, 26 अगस्त 2019 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=पीसी लाल यादव |अनुवादक= |संग्रह=मै...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
मोला भुलवार के तैं, खुदे भुलाये रे।
मया के मुंदरी ल तैं, काबर उलाये रे?
तोर सेती घर छोड़ेव सगा-सजन,
मया म तोर करेंव तन-मन अरपन॥
तभो तहीं जान मुंह तैं काबर फुलाए रे?
मोला भुलवार के तैं खुदे भुलाए रे॥
बिसवास दे में कहिथे बिसवास मिलथे,
मरत मनखे ल जिनगी बर सांस मिलथे।
फेर कपट के पास तैं काबर ढुलाए रे?
मोला भुलवार के तैं खुदे भुलए रे।
मोर काहे मैं तो तोर सुरता म जी लेहूँ,
तोर दे जहर ल घलो हाँस के पी लेहूँ।
पिरित के नाव, संसो के झुलना झुलाए रे,
मोला भुलवार के तैं खुदे भुलए रे॥