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मया के मोल / पीसी लाल यादव

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मया मयारू जिनगी बर अमोल।
मया ह मिलथे मया के मया के मोल।

मया ह धरती रे मया ह अगास
माय म बुझाथे रे मन के पियास।
मया महर-महर जिनगी के सांस,
मया बिन मनखे सइघो जियत लास॥

मंदरस कस गुरतुर मय के बोली बोल।
मया मयारू जिनगी बर अमोल॥

मया-पिरित ले संगी मन अपन रंगा,
मया मिले त मयारू मन हर चंगा।
मया ह सुरूज ये अउ मया हर चंदा,
मया ह निरमल जइसे जमुना-गंगा॥

पिरित के पंछी करे नित किलोल।
मया मयारू जिनगी बर अमोल॥

मया बिन बिरथा हवय ये जिनगानी,
काम नई आवय तोर घन अउ दोगानी।
मया हवय पबरित जिनगी के निसानी,
सागर ले मिले जस नदिया के पानी॥

मुंदे झन राह मन के आँखी खोल
मया मयारू जिनगी बर अमोल॥