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मध्य-वर्ग (चित्र 2) / महेन्द्र भटनागर
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दस बज रहे हैं रात के —
काफ़ी दूर पर
कुछ बेसुरे-से ढोल बजते हैं
किसी बारात के !
अति-तार स्वर से
गा रहा है रेडियो सीलोन
बासी गीत फ़िल्मी
‘आन’ के ‘बरसात’ के !
पास के घर में
थकी-सी अर्द्ध-निद्रित
तीस वर्षीया कुमारी
करवटें लेती किसी की याद में !
क्लर्क है उसका पिता
और वह उलझा हुआ है
फ़ाइलों के ढेर में !
(ज़िन्दगी के फेर में !)
सोचता है —
रात काफ़ी हो गयी,
अब शेष देखा जायगा जी बाद में !
झँपने लगीं पलकें
बडे़ बेफ़िक्र बचपन की सहेजी याद में !