संगी आगे रे फागुन / पीसी लाल यादव
मांदर के थाप परे, संगी आगे रे फागुन।
घुंघरू बाजे रूनझुन, मन होगे रे बिधुन॥
महर-महर मन मधुवन
पिरित-पराम-पुरवाही।
कुहु-कुहु कोयली कुहके
आमा मऊर ह ममहाही॥
अंजरी-अंजरी फुलवा, बेरा बाँटे रे सगुन।
मांदर के थाप परे, संगी आगे रे फागुन॥
उल्हवा-उल्हवा पाना कस
आंखी के सपना उल्हवा।
आसा के डोर फंदाये,
मया-पिरित के झुलवा॥
नंदिया-तरिया के संग, कुँवर काया कुन कुन।
मांदर के थाप परे, संगी आगे रे फागुन॥
कोजनी कलेचुप कइसे?
तोर मया भरगे सांस में।
मन करथे उड़ जातेंव अभी
आजे मैं अगास में॥
हिरदे बेधे बिलवा, बइरी बाँसुरी तोर धुन।
मांदर के थाप परे, संगी आगे रे फागुन॥
मऊहा कस माते मन ह
तन ह परसा कस दहके।
तोर आरो-सोर लेवत
साध चिरई कस चहके॥
रंग-गुलाल पिचकारी, खेले राधा-किसुन।
मांदर के थाप परे, संगी आगे रे फागुन॥