भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
आगे ऋतु बसंत / पीसी लाल यादव
Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:07, 26 अगस्त 2019 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=पीसी लाल यादव |अनुवादक= |संग्रह=मै...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
आगे ऋतु बसंत, तैंहा नई आए,
केंवची करेजा ल काबर कल्पाए?
कुहु-कुहु कोयली, गावत हवय गाना
गाना गा-गाके, मारे मोला ताना।
परसा फूल बैरी आगी लगाए।
आगे ऋतु बसंत, तैंहा नई आए।
मऊरगे हे आमा, मात गेहे मऊहारी
रंग गुलाल पिचकारी, खेलत हे संगवारी।
तोर सुरता म, नैना नीर बरसाए
आगे ऋतु बसंत, तैंहा नई आए।
महर महर रिग-बिग फूले हे फुलवा।
रस चुहके करिया भौंरा, झूलत हे झुलवा।
फूल-फूल झूल के मोला बिजराए
आगे ऋतु बसंत, तैंहा नई आए।