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जाग गेहे मोर गाँव / पीसी लाल यादव

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बड़े बिहनिया बोले, चिरई ह चाँव-चाँव।
बेरा उवे के पहिली, जाग गे हे मोर गाँव॥

सो उठ के घर-अंगना,
गली-खोर ल बटोरिन।
पानी बर पनिहारिन मन
खट-खट बोरिंग ओंटिन॥

सोनहा किरन के छरा, देवागे हे ठाँव-ठाँव।
बेरा उवे के पहिली, जाग गे हे मोर गाँव॥

बियारा म पहाड़ कस,
गंजाय हवय धान ह।
भर-भर टेक्टर चले
मन मगन हे किसान ह॥

डेहरी म परगे सुग्घर, अनपूरना के पाँव।
बेरा उवे के पहिली, जाग गे हे मोर गाँव॥

कोठा ल गरुवा ढिला के
माढ़े खइरका डाँड़ में।
लइका मन गिल्ली-भौंरा,
खेलत हवय यहा जाड़ में॥

सुरुर-सुरुर पुरवाही, जुड़ अमरइया के छाँव।
बेरा उवे के पहिली, जाग गे हे मोर गाँव॥

चँवरा में बइठे बबा,
तापत हवय रऊनिया।
चटनी-बासी झड़कत हे,
खेत जाय बर नोनी पुनिया॥

लगथे कोनो सगा आही, कँऊवा करे काँव-काँव।
बेरा उवे के पहिली, जाग गे हे मोर गाँव॥