जिनगी के संगी का कहेना! / पीसी लाल यादव

सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:23, 26 अगस्त 2019 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=पीसी लाल यादव |अनुवादक= |संग्रह=मै...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

मुनगा के डारा बोले मैना,
गुरतुर-गुरगुर बैना,
जिनगी के संगी का कहेना!
है ना... जिनगी के संगी...

जिनगी में सत् करम कर ले,
मनखेपन हित धरम कर ले।
सब अपने, नहीं कोनो बिरान,
ऊँच-नीच के भरम हर ले॥

जग, कुटुम-कबीला सगा-सैना
जिनगी के संगी का कहेना?

मनुख जोनी तैं पाये जाग,
धन-धन तोर पुरबल के भाग।
जतन कर कभू झन उलरय,
मया-पिरित के ठाहिल ताग॥

करम हवे तोर जिनगी बर ऐना
जिनगी के संगी का कहेना!

सत-नीयत ला राख पाज के,
जेन हे तेन खा बाँट-बिराज के।
सुख बाँट म सुख मिले संगी,
सिरतोन, काली के न आज के॥

माया-मोहनी मटकावय नैना,
जिनगी के संगी का कहेना!

इस पृष्ठ को बेहतर बनाने में मदद करें!

Keep track of this page and all changes to it.