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पथरा म पानी ओगरथे / पीसी लाल यादव

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करम भूमि म फल पाये बर, महिनत करे ल परथे।
बिधना लकीर भर देथे, रंग खुद ल भरे ल परथे।

भाग के रेखा बनथे-बिगड़ थे,
करम तो अपन साथ हे।
दुख के काबर रोना-धोना,
जब सलामत पाँव-हाथ हे॥

का जीव जोगनी के तेन घलो, जुग-जुग रतिहा बरथे।
करम भूमि म फल पाये बर, महिनत करे ल परथे॥

ये हाथ ह नोहे लमाये बर
जांगर-जिनगी ये कमाए बर।
मांगन-मरना एक बरोबर
बेरा नोहे बिरथा पहाये बर?

जाँगर-बाँहा के बल म भइया, पथरा म पानी ओगरथे।
करम भूमि म फल पाये बर, महिनत करे ल परथे॥

पुरुसारथ बिन मिले कभू न
कहँू ल कोनो कखरो ठिहा?
संझा-बिहनिया रोज चेतावत
उवत-बूड़त सुरूज बदरिहा॥

आगी में बर-बर के सोन, कसौटी में खर उतरथे।
करम भूमि म फल पाये बर, महिनत करे ल परथे॥