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गीता के गियान / पीसी लाल यादव

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सुन ले चतुर सुजान, गोठ गीता के गियान
सुन ले थोरिक, सुन के गुन ले।
मनखे आवय जी चिरकुट के पुतरी
नाचत हवय ओ बाहिर-भीतरी।
अगम अगोचर हे नचाने वाला
ओखरे च हाथ म हवय सुतरी॥
सुन ले चतुर सुजान...

ये जिनगी के जी एके ठन मरम,
मनखे करय जी अपन करम।
फल के आसा करे झन कभू
ऊपर वाले के ओहा धरम॥
सुन ले चतुर सुजान...

अहम के एक दिन होथे बिनास
फूलथे-फरथे मन के बिसवास।
काल बइरी कोनो ल नई छोड़य
गिनती के इहाँ हवय तोर साँस॥
सुन ले चतुर सुजान...

ये जग आवय जी आना-जाना
काया के नई हे कोना ठिकाना
आत्म आवय अजर अनिवासी
चोला बदले ठाठ पुराना
सुन ले चतुर सुजान...