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बेरा में जतन-जुगती / पीसी लाल यादव
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चंदा के बुड़ती, सुरूज के उगती,
कर ले बेरा म जतन-जुगती।
घोंधरा छोड़ चिरई उड़े
अपन पाँखी पसारे।
सुरूज के सुवागत करे
चींव-चींव जय-जोहारे॥
बिन महिनत के नई होय मुक्ती।
कर ले बेरा में जतन-जुगती॥
झुरुर-झुरुर झिरिया झर,
देवत हवय सन्देसा।
बिरो बिना बिसराम कहाँ?
चाहे करो कुछु पेसा॥
जांगर बांध ले करम के गुपती।
कर ले बेरा म जतन-जुगती।
सुरुर-सुरुर पुरवाही ह
गिंजरे चारो डहर।
मुच-मुच हाँसे फुलवा
करय माहर-माहर॥
रक्सहूँ-भंडार अउ उगती-बुड़ती।
कर ले बेरा म जतन-जगती।