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झुकी हुयीं बाअदब हैं आँखें / संदीप ‘सरस’

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झुकी हुयीं बाअदब हैं आँखें।
खुदा कसम क्या ग़ज़ब हैं आँखें।

भले ही लब चुप रहें तुम्हारे,
मुझे तो लगता है लब हैं आँखे।

तुम्हारी आँखों में जब से झाँका,
हुई मिरी बेअदब हैं आँखें।

निगाह उठना निगाह फिरना,
अदा का तेरी ही ढब हैं आँखें।

सम्हालती हो न जाने कैसे,
मुझे लगा बातलब हैं आँखें।

निगाह में शोखियाँ सी थीं कल,
मगर नशीली सी अब हैं आँखें

कभी नज़ाकत में कातिलाना,
कभी सितम का सबब,हैं आँखें।