भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
जब तक / सुशान्त सुप्रिय
Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:17, 5 सितम्बर 2019 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सुशान्त सुप्रिय |अनुवादक= |संग्रह...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
जब तक स्थिति पर
क़ाबू पाने
पुलिस आती है
जल चुके होते हैं
दर्जनों घर आगज़नी में
जब तक
फ़्लैग-मार्च के लिए
सेना आती है
मारे जा चुके होते हैं
दर्जनों लोग दंगों में
जब तक शांति-वार्ता की
पहल की जाती है
आ चुकी होती है
एक बड़ी दरार मनों में
जब तक
सूरज दोबारा उगता है
अँधेरा लील चुका होता है
इंसानियत को