स्रोत यही है
यही हो तुम
यद्यपि खड़ी रहती हो
बैठ जाती हो
घर से चली जाती हो बरामदे में
फिर भी स्रोत तो यही है
कितने शान्त प्रवाह में
बहता आ रहा सारा क्षण
मैं तो दोनों हाथों से
भर लेता हूँ एक अँजुरी जल
उसी जल में छाया फेंकती हो तुम
अरे ओ ! जयश्री जीवन !
मूल बाँगला भाषा से अनुवाद : रामशंकर द्विवेदी