भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
जवानी / महेन्द्र भटनागर
Kavita Kosh से
Pratishtha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:11, 18 अगस्त 2008 का अवतरण
समय तो गुज़रता चला जायगा
पर, जवानी कभी भी मिटेगी नहीं !
करोड़ों युगों से
जवानी का दरिया
हज़ारों रुकावट मिटाकर
निरंतर बहा है,
व बहता रहेगा !
करोड़ों युगों से
जवानी का सरगम
नयी ज़िन्दगी का
नया गीत गाता रहा है,
व गाता रहेगा !
कि झंकार जिसकी
कभी भी दबेगी नहीं,
और
नभ में, दिशा में,
नगर में, डगर में,
बड़े शोर से गूँज
सबको जगाती रहेगी !
व सपनों की दुनिया
अँधेरे की दुनिया
सदा लड़खड़ाती रहेगी !
अँधेरा गिरेगा, अँधेरा मिटेगा,
कभी पर,
जवानी की ज्योति धुँधली पड़ेगी नहीं !
समय तो गुज़रता चला जायगा
पर, जवानी कभी भी मिटेगी नहीं !