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पिता / अनुपमा तिवाड़ी

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वो सुन्दर सुघड़ इमारत थी
जो दूर से ही अलग दिखाई देती थी
धीरे – धीरे वो इमारत खण्डहर होती गई
और फिर एक दिन नहीं बची
वो सुन्दर सुघड़ इमारत पिता थे
अब घूम रहे हैं हम
बिखरे – बिखरे से
कमरे – कमरे से.