मैं पूछ नहीं सका / यतीश कुमार
पूछना चाहता था
ठीक पास बैठी महिला से
कि उसने मास्क क्यों पहन रखा है
क्या उसकी साँसे घुटती नहीं है
सामने खड़े दरबान से भी पूछना था मुझे
कि क्या तुम्हारी टांगों में दर्द नहीं होता
कुछ पल के लिए
बैठ क्यों नही जाते
रीढ़ को झुकाए
मोची से भी कहना था मुझे
ऐंठ जाएँगी टाँगे बैठे-बैठे
थोड़ा चहलकदमी तो कर लो
सर्द रात में बोरे में लिपटे
बुज़ुर्ग से पूछना था
जिसके हाथ में
जल कर बुझ चुकी बीड़ी है
सीना धौंकनी-सा फड़फड़ा रहा है
और पेट का तंदूर ठंडा पड़ गया है
बुझायी गयी बीड़ियों से
दीवार पर उसने
बीते दिन लिख रखे हैं
भाषा अव्यक्त सी है
उसके ही पाँव से टिकी
उस औरत से भी पूछना भूल गया मैं
जिसकी आँखों का नूर
कोरों पर अब भी अटका पड़ा है
नमक बहने का उस पर असर कम क्यों है?
वह इतनी तेजी से दौड़ा
कि मैं पूछ ही न पाया
उस बच्चे से
उसके घर का पता
मासूमियत पर जिसके
चढ़ चुका है
नीमक़श तेजाबियत का नशा
जो मुझे ऑफ़िस आते-जाते
हर बार खेलता दिख जाता है
उन किन्नरों से भी नहीं पूछ पाया
कि तुम्हें तीसरे लिंग का दर्जा मिलने में
युग क्यों बीत गए ?
कागज में दर्ज हो चुकने के बाद
अब भी चौराहे पर
तुम ताली क्यों बजा रहे हो ?
उस पागल से
उसकी हँसी का राज
समझना था मुझे
जो मुर्दा घरों के बाहर
रोते-बिलखते लोगों पर हँसता है
मैं ख़ुद से भी नहीं पूछ पाया
कि इतना परेशां क्यूँ हूँ
और सही समय पर
आँखें मूँद लेने की कला
कब सीख गए !!