भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

कच्ची सड़क / अरुण चन्द्र रॉय

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:02, 26 सितम्बर 2019 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अरुण चन्द्र रॉय |अनुवादक= |संग्रह=...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

कच्ची सड़को को छोड़
जब चढ़ता हूँ
पक्की सड़क पर
पीछे छूट जाती है
मेरी पहचान
मेरी भाषा
मेरा स्वाभिमान !
 
कच्ची सड़क में बसी
मिटटी की गन्ध से
परिचय है वर्षो का
कँक्रीट की गन्ध
बासी लगती है
और अपरिचित भी
 
अपरिचितों के देश में
व्यर्थ मेरा श्रम
व्यर्थ मेरा उद्देश्य
लौट-लौट आता हूँ मैं हर बार
पीठ पर लिए चाबुक के निशान
मनाने ईद, तीज-त्यौहार
 
कहाँ मैं स्वतन्त्र
मैं हूँ अब भी ग़ुलाम
जो मुझे छोड़नी पड़ती है
कच्ची सड़क !