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विश्राम / अरुण चन्द्र रॉय

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समय
तुम कब रुके थे आख़िरी बार
याद है क्या तुम्हें
विश्राम का कोई एक पल

समय क्या तुम रुके थे
जब सीता के लिए फटी थी पृथ्वी
या फिर राम ने ली थी जल-समाधि
द्रौपदी के चीरहरण पर
अभिमन्यु की मृत्यु पर ही ।

समाधिस्थ हो रहे बुद्ध को देख भी
समय तुम नहीं ठहरे
न ही ठहरे तुम नालन्दा को जलते देख
कलिंग के भीषण नरसंहार को देख भी
तुम्हे वितृष्णा नहीं हुई
 रुके नहीं तुम, समय

हिरोशिमा और नागासाकी में
आधुनिक विज्ञान के चमत्कारिक नरसंहार के
बने तुम साक्षी
समय, तुम क्यों नहीं करते विश्राम !

तुम रुक गए तो क्या होगा अधिक से अधिक
गहन अन्धकार की सुबह नहीं होगी
किन्तु क्या तुमने सोचा है कितना अन्धकार है
इस रौशनी के पीछे !

समय, तुम्हें विश्राम की आवश्यकता है, जाओ, ठहर जाओ ।