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चार सौ बीस / बिन्देश्वर प्रसाद शर्मा ‘बिन्दु’

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मंदिरों में पंड़ो का राज
ठग – लुटेरों का अंदाज।
देवों का दर्शन में फीस है
पंड़ा बनते चार सौ बीस हैं ।।
चरम पर ऐसा व्यापार है
भक्त – भगवान लाचार है।
भक्तजनों की उमड़ती है भीड़
अव्यवस्था बन जाती है पीड़।
सहन करता सिर्फ गरीब है
पैसौं वालों का क्या नसीब है।।
हर मोड़ ऐसे यह लचार है
जहाँ देखिये लम्बी कतार है।
पैसों पर बन जाती कतारें
कुछ कर नहीं पाती सरकारें।
आम आदमी रहता है तंग
ना जाने कब बदलेगी ढंग।।
फरेबों का अलग बाजार है
इनमें ही हो जाता दिदार है।
लाखों – करोड़ों के चढ़ावा
हजम कर जाते हैं ये बाबा।
आस्था – विश्वास का हनन
धर्म नाम पर हो रहा पतन।।
यह उन पंड़ो का रोजगार है
देश आज इसलिए बिमार है।