कथा कौन-सी / राजा अवस्थी
अपनी ही पीड़ा के पन्ने
बाँच नहीं पाये
तुमको वे कैसे समझाते
अर्थ व्यथाओं के.
कई पीढ़ियों से पुरखों ने
पोथी सत्यनारायण बाँची;
किसने कही, सुनी किसने थी
कथा कौन-सी, कैसी साँची;
नई खाद का असर
छोड़ बैठे यजमान को
पोते पूछ रहे बाबा से
अर्थ कथाओं के.
तोता हुंकारी भरता है
चिड़िया अमर कथा कहती है;
मन की मैना तन कोटर में
अपने में खोई रहती है;
सदियों के अनुभव
दादी समझाती-गाती हैं
अक्षर-अक्षर खोल रहे हैं
अर्थ प्रथाओं के.
शिव की अमरकथा को सुनकर
अमर हुए तोते की गाथा;
सोयीं उमा जानकर शंकर
पीट रहे हैं अपना माथा;
गली-गली शुकदेव
कथा का गायन करते हैं
मथुरा वृन्दावन में मेले
संत कथाओं के.
वहीं मत्स्यगंधा का किस्सा
ठगी गई द्रौपदी वहीं है;
त्यक्त धनुर्धर वहीं कर्ण-सा
गांधारी की आँख वहीं है;
मोह और कर्तव्य-न्याय का
द्वन्द्व नहीं छूटा
पृष्ठ भरे इन धृतराष्ट्रों से
अमर कथाओं के.