करते रहे अमल नुस्खों पर
लेकिन यह क्या? 
मर्ज बढ़ाती रहीं निरन्तर
बंधु दवायें। 
उतरे हुए नजर से
कैसे तुम्हें सुहायेंगे; 
कैसे गीत बधाई के
घर आकर गायेंगे; 
खाद और पानी ने यारी
करली कीटों से, 
उम्मीदों का चैत
काट ले गईं हवायें। 
पथ पर सुविधाओं के साधन
शूल विषैले बोये; 
चकाचौंध में मेलजोल के
अर्थ निरन्तर खोये; 
कटुताओं की फसल
पनप आई अँगनाई में, 
हमसे आहत हुईं
मिलन की धवल प्रथायें। 
औरों के घर का उजियारा
जिनको कभी न भाये; 
दीपक बँटवाने के ठेके
उनने ही हथियाये; 
साठ-गाँठ हो गई
कुम्हारों से उनकी पक्की, 
अँधियारे के वृत्त
जनों के हिस्से आयें।