मैं लगभग टूटा हुआ, बे-दरो-दीवार हूँ ।
ये ख़तरनाक शहर अन्तिओक
निगल गया मेरा सारा पैसा —
बेहद बेतुकी ज़िन्दगीवाला ये ख़तरनाक शहर ।
मगर मैं जवान हूँ और ख़ूब तन्दुरुस्त,
यूनान का विलक्षण विशेषज्ञ :
अरस्तू और अफ़लातून को मैंने घोटकर पी डाला है —
कवि, वक्ता, या जिस किसी का तुम नाम लो !
फौजी मामलों का भी कुछ अन्दाज़ा है मुझे
भाड़े पर सिपहगीरी करने वाले कई उम्रदराज मेरे दोस्त हैं ।
सरकारी हल्कों में भी आमदरफ़्त है मेरी,
बीते साल छह महीने मैंने सिकन्दरिया में गुज़ारे :
वहाँ क्या कुछ हो रहा है थोड़ी बहुत जानकारी है
[और वह फ़ायदेमन्द है]
काकेरगेटिस<ref>तोलेमी एवरगेटिस [170-116 ई०पू०] का लोगों में प्रचलित उपहासास्पद नाम, जिसका अर्थ है ‘कुकर्मी।’</ref> की साज़िशें, उसके घटिया तौर-तरीके —
और भी बातें ।
लिहाज़ा मैं खुद को मुकम्मलतौर पर
इस मुल्क, अपने प्यारे वतन, सीरिया की
ख़िदमत के काबिल पाता हूँ ।
जो कोई भी काम वे मुझे सौंपें
मैं ख़ुद को मुल्क के लिए फ़ायदेमन्द साबित करने की
पूरी कोशिश करूँगा — यही मेरा कहना है ।
लेकिन अगर वे अपनी तिकड़मों से मुझे नाउम्मीद करते हैं —
हम जानते हैं उन्हें — वे चलते पुरजे,
ज़्यादा कुछ कहने की ज़रूरत नहीं —
अगर वे मुझे नाउम्मीद करते हैं, तो फिर मुझ पर दोष न मढ़ा जाय !
मैं पहले जाबिनास<ref>इस शब्द का अर्थ है ‘ग़ुलाम’ — यह अलेक्सान्दर का उपहासास्पद नाम था। यह अलेक्सान्दर वालास का बेटा था, जिसने तोलेमी की मदद से सीरिया की शाही गद्दी हथिया ली थी। [128-123 ई०पू०]
</ref> से मिलूँगा
और अगर उस ज़ाहिल ने मुझे तवज्जो न दी
तो मैं उसके मुख़ालिफ़ ग्रिपोस<ref>इस शब्द का अर्थ है ‘तोते की चोंच जैसी नाक।’ यह अन्तिओकोस के लिए है। इसने वालास की हत्या की थी।</ref> के पास जाऊँगा
और अगर उस मूरख ने भी मुझे मुलाजमत न दी
तो मैं सीधे हीराकनोस<ref>पूरा नाम जॉन हीराकनोस, 134-104 ई०पू० के दरमियान जूडिया का शासक। सीरिया के शाही तख़्त के लिए आए दिन समस्याएँ खड़ी करने वाले कबीलाई सरदारों से यह फ़ायदा उठाता था।</ref> के पास पहुँचूँगा
इनमें से कोई एक तो मुझे रखेगा ही
और इस बाबत मेरा सोच यक्दम सादा है
कि मैं किसे चुनता हूँ —
तीनों के तीनों सीरिया के लिए एक जैसे बुरे हैं ।
मगर मैं एक बरबाद आदमी
मुझे ग़लत न समझा जाय !
मैं एक ग़रीब गुनहगार,
महज़ दो छोरों को मिलाने की कोशिश कर रहा हूँ
परवरदिगार खुदाओं को एक चौथा
एक वाजिब शख़्स बनाने की
जहमत उठानी चाहिए थी —
मैं ख़ुशी-ख़ुशी उसके साथ चला जाता ।
[1930]
इस कविता में वर्णित समय 128-123 ई०पू० और स्थल सीरिया की प्राचीन राजधानी अन्तिओक है। केन्द्रीय चरित्र कवि-कल्पित है, किन्तु सन्दर्भ सभी ऐतिहासिक ।
अँग्रेज़ी से अनुवाद : सुरेश सलिल